बिहार की राजनीति में एक बार फिर रोजगार का मुद्दा सबसे गर्मा गया है। इस बार चर्चा में हैं तेजस्वी यादव, जिन्होंने एक ऐसा वादा किया है जो हर बेरोजगार युवक-युवती के दिल में उम्मीद की नई लौ जगा रहा है। उन्होंने जनता के सामने घोषणा की है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो “हर घर में एक सरकारी नौकरी” दी जाएगी। यह वादा जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी इसके पीछे की राजनीतिक सोच भी है। बिहार में बेरोजगारी की दर हमेशा से देश में सबसे ऊँची रही है, और तेजस्वी यादव ने इस दर्द पर हाथ रख दिया है जिसे हर घर महसूस करता है। उन्होंने अपने भाषण में साफ कहा कि अगर बिहार की जनता उन्हें मौका देती है तो वे सरकार बनने के 20 दिन के भीतर ऐसा कानून लाएँगे जो हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी की गारंटी देगा।
तेजस्वी यादव का यह एलान महज चुनावी घोषणा नहीं बताया जा रहा, बल्कि उन्होंने इसे एक गंभीर सामाजिक पहल के रूप में पेश किया है। उनका कहना है कि बिहार के युवाओं के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं, लेकिन राज्य की नीतियों ने अब तक उन्हें सही अवसर नहीं दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछली सरकारों ने रोजगार के नाम पर सिर्फ वादे किए लेकिन कभी धरातल पर कुछ नहीं हुआ। तेजस्वी का दावा है कि अगर उन्हें मौका मिला, तो वे सरकारी विभागों में खाली पड़े लाखों पदों को भरेंगे और साथ ही नए सेक्टरों में नौकरियों के अवसर भी पैदा करेंगे। उनका तर्क है कि बिहार में उद्योग और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ेगा तो रोजगार अपने आप बढ़ेगा।
तेजस्वी यादव का यह बयान आते ही राजनीतिक माहौल गरमा गया। विपक्षी दलों ने इसे “चुनावी जुमला” बताया और कहा कि हर घर को सरकारी नौकरी देना व्यावहारिक रूप से असंभव है। उन्होंने सवाल उठाया कि बिहार जैसे राज्य में, जहाँ लाखों परिवार हैं, वहां इतनी नौकरियां आएंगी कहाँ से? सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या और वित्तीय संसाधनों की कमी के बीच यह वादा कितना यथार्थ है, इस पर विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं। लेकिन तेजस्वी ने अपने अंदाज़ में जवाब दिया — “जिन्हें भरोसा नहीं, वे पहले हमारे काम देखकर बात करें। हमने पहले भी लाखों युवाओं को नौकरी दी थी, आगे भी देंगे।”
सच तो यह है कि तेजस्वी यादव ने जब पिछली बार उपमुख्यमंत्री का पद संभाला था, तब उन्होंने सरकारी विभागों में भर्ती प्रक्रिया को तेज करने का प्रयास किया था। शिक्षकों की भर्ती, पुलिस विभाग में रिक्त पदों को भरने जैसी कई योजनाएँ उन्होंने शुरू की थीं। हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता और गठबंधन की उलझनों के चलते बहुत कुछ अधूरा रह गया। शायद यही वजह है कि इस बार वे जनता को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला तो वे बेरोजगारी की समस्या पर निर्णायक कदम उठाएँगे।
तेजस्वी का यह वादा सिर्फ नौकरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सुरक्षा और समानता के संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है। बिहार जैसे राज्य में, जहाँ आज भी पलायन की समस्या सबसे बड़ी है, वहां अगर हर घर के एक सदस्य को नौकरी मिल जाए, तो लाखों परिवारों की जिंदगी बदल सकती है। यह न सिर्फ रोजगार देने का वादा है बल्कि गरीबी कम करने और युवाओं को राज्य में रोकने का भी प्रयास है। तेजस्वी ने कहा कि वे ऐसी नीतियाँ लाएँगे जिससे युवा बिहार में ही रहकर काम करें और राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस्वी का यह एलान युवाओं को आकर्षित करने का सबसे प्रभावी तरीका है। बिहार में 60% से ज्यादा मतदाता युवा वर्ग के हैं, जो बेरोजगारी से सबसे अधिक प्रभावित हैं। इसलिए “हर घर एक नौकरी” जैसा नारा चुनावी रणनीति के लिहाज से बेहद असरदार साबित हो सकता है। इससे तेजस्वी यादव खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश कर रहे हैं जो रोजगार को अपनी प्राथमिकता मानते हैं। वहीं, दूसरी ओर विरोधी दलों को इस वादे का जवाब देने में मुश्किल हो रही है क्योंकि बेरोजगारी का मुद्दा जनता के बीच बेहद गहराई से जुड़ा हुआ है।
आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह योजना राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। बिहार की वित्तीय स्थिति पहले से कमजोर मानी जाती है। ऐसे में हर घर को सरकारी नौकरी देने के लिए भारी बजट की जरूरत पड़ेगी। अगर इस वादे को धरातल पर लाना है तो न सिर्फ नई नौकरियाँ पैदा करनी होंगी बल्कि निजी क्षेत्रों को भी राज्य में निवेश के लिए आकर्षित करना होगा। तेजस्वी यादव ने अपने भाषण में यह भी संकेत दिया कि वे निजी कंपनियों को बिहार में निवेश के लिए प्रोत्साहन देंगे, ताकि अधिक से अधिक रोजगार के अवसर बनाए जा सकें।
तेजस्वी यादव का यह बयान उस समय आया है जब बिहार में चुनावी माहौल चरम पर है। जनता विकास और रोजगार के मुद्दे पर ही मतदान करेगी, यह सभी दलों को पता है। ऐसे में तेजस्वी ने जो वादा किया है, वह सीधे जनता की भावनाओं को छूता है। उनके समर्थक कह रहे हैं कि यह सिर्फ चुनावी नारा नहीं बल्कि एक नया विज़न है जो बिहार को आत्मनिर्भर बनाएगा। सोशल मीडिया पर यह बयान वायरल हो गया है और युवा वर्ग में इसे लेकर उत्साह दिखाई दे रहा है। कई युवाओं ने इसे “उम्मीद की किरण” बताया है, जबकि कुछ लोगों ने इसे “राजनीतिक चाल” कहा है।
इस वादे की सच्चाई क्या होगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि तेजस्वी यादव ने अपने इस एलान से बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। अब सवाल यह नहीं कि लोग किस पार्टी को वोट देंगे, बल्कि यह है कि कौन वास्तव में रोजगार के वादे को पूरा कर पाएगा। जनता अब सिर्फ भाषण नहीं, बल्कि ठोस नतीजे चाहती है। बिहार के लाखों बेरोजगार युवाओं की नजर अब इस बात पर है कि क्या तेजस्वी यादव का “हर घर में नौकरी” वाला सपना सच में साकार हो पाएगा या यह भी एक अधूरा वादा बनकर रह जाएगा।
अगर इस वादे को सच में लागू कर लिया गया तो बिहार की तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है। हर घर में नौकरी का मतलब होगा आर्थिक स्थिरता, पलायन में कमी, और विकास की नई शुरुआत। लोग राज्य छोड़कर बाहर काम करने नहीं जाएंगे, बल्कि बिहार में ही सम्मानजनक जीवन जी पाएंगे। यह कदम सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन सकता है। लेकिन अगर यह वादा अधूरा रह गया, तो यह युवाओं की उम्मीदों को तोड़ने वाला साबित होगा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि तेजस्वी यादव ने जो घोषणा की है, वह बिहार की राजनीति का सबसे साहसिक और जोखिम भरा कदम है।